महोदय/महोदया उत्तर प्रदेश के जनपद लखीमपुर खीरी से वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित बहुआयामी राजनीतिक दल के माध्यम से हम आप सभी सम्मानित पदाधिकारियों का ध्यान एक अति महत्वपूर्ण विषय की और आकर्षित करना चाहेंगे पिछले कुछ वर्षों से ऐसा देखा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश के पिछड़े, वलित, पसमांदा मुसलमानो की आर्थिक वा इल्मी स्थिति बाद से बदतर होती जा रही है वहीं प्रदेश में बने हजारों (लगभग 21 हजार) मस्जिदों के पेश इमामो को आर्थिक तंगी की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है जानकारी के अनुसार आजादी के बाद 1954 एक्ट के तहत वक्फ बोर्ड का गठन किया गाया था जबकि 1964 सेंट्रल वक्फ बोर्ड के साथ 1954 की धारा 9(1) के तहत भारत के सभी प्रदेशों में वक्फ बोर्ड का गठन किया गया है अगर बात करें वक्फ बोर्ड की संपत्ति की तो देश में रेलवे व सेना के बाव तीसरी सबसे बड़ी संपत्ति का मालिक है वहीं पूरे वेश में 865646 संपत्तियों वर्ज हैं जिनमें से केवल 80000 बंगाल में ही वर्ज हैं जबकि उत्तर प्रदेश में 35407 संपत्तियां वर्ज हैं पर बहुत ही अफसोस की बात है कि आज भी हम अपने बच्च्चों को इस्लामी शिक्षा देने में नाकाम साबित हो रहे हैं और ना ही मस्जिद के पेश इमाम को वक्फ बोर्ड की तरफ से मासिक वेतन देने में समर्थ रहे हैं जिसका कारण यह भी बताया जा रहा है कि प्रदेश के जनपद की संपत्तियां जो की मात्र ₹10 से लगाकर ₹200 मासिक या ₹200 से लगाकर ₹500 वार्षिक ही किराए या लीज पर दिए गए हैं जो कि वर्तमान जीडीपी रोजाना दिनचर्या जीवन के खर्चे से बहुत ही कम है जिसको तत्काल बढ़ाने की आवश्यकता है वही वक्फ बोर्ड नियम के अनुसार बोर्ड की संपत्ति का 93% स्थानीय कमेटी संरक्षण हेतु रखती है जबकि 7% ही राज्य वक्फ बोर्ड तक पहुंचता है उसमें से मात्र एक प्रतिशत ही सेंट्रल वक्फ बोर्ड तक पहुंचता है जिसको भी तत्काल बढ़ाने की आवश्यकता है नियम में बदलाव कराते हुए 50% स्थानीय कमेटी 40% राज्य वक्फ बोर्ड जबकि 10% सेंट्रल वक्फ बोर्ड को जाना चाहिए उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश के जिले बहराइच वरगाह शरीफ से सालाना 10 करोड़ की पैदावार होती है जिसमें से 7 करोड़ वरगाह कमेटी लेती है एक करोड़ प्रदेश वक्फ बोर्ड जबकि मात्र 10 लाख तक ही सेंट्रल वर्क बोर्ड तक पहुंचता है ठीक यही हाल दिल्ली निजामुद्दीन दरगाह शरीफ वख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेर शरीफ का भी है इसके अतिरिक्त अनेकों संपत्तियों का भी यही हाल ही ऐसे में वेतन दे पानी में समस्याओं का सामना पड़ सकता है परंतु इसके बावजूद भी भारत के अनेकों प्रदेश दिल्ली, हरियाणा, कर्नाटक, बंगाल, केरल, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, बिहार, पंजाब जैसे प्रदेशों में पेश इमाम, मौलाना, शमौञ्जिन, मस्जिद की सैलरी न्यूनतम ढाई हजार से लगाकर ₹20000 मासिक तक वी जा रही है वही उत्तर प्रदेश में केवल उन्हीं मस्जिद के इमाम को वेतन दिया जा रहा है जो पुरातात्विक विभाग के अंतर्गत आती हैं 1993 में गणित अखिल भारतीय इमाम संगठन तथा वक्फ वेलफेयर फोरम के माध्यम से लगातार वेतन वितरण के लिए प्रयास किए जाते रहे हैं जबकि नियम अनुसार मस्जिद के पेश इमाम को वेतन देना ही वक्फ बोर्ड की जिम्मेवारी है आंकड़े कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में 35407 संपत्तियां दर्ज हैं यदि प्रत्येक संपत्ति की कीमत 1000Rs मासिक रखी जाए तो लगभग 35407000 Rs करोड़ 3 करोड़ 54 लाख 7000 हजार रुपए मासिक आमदनी हो सकती है वही सालाना 42 करोड़ 48 लाख 84 हजार की आमदनी हो सकती है जिससे बोर्ड के द्वार बहुत ही आसानी के साथ वेतन दिया जा सकता है पर अफसोस की बात है कि अभी तक ऐसा नहीं हो पा रहा है। अतः कौम की आर्थिक स्थिति तंगी इल्म की अवश्यकता को देखते हऐ उत्तर प्रदेश के उभरते हुए बहआयामी राजनीतिक दल के माध्यम से पेश इमाम, मौज्जिन, मौलाना के मासिक वेतन की मांग की अपील करता है। निश्चित तौर पर हम सब का यह प्रयास मुस्लिम कौम में इल्म का क्रांतिकारिक बदलाव साबित करेगा।
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