रविवार, 21 जुलाई 2024

जनपद लखीमपुर खीरी के महान क्रांतिकारिक नसीमुद्दीन मौजी की जीवन गाथा

जनपद लखीमपुर खीरी के महान क्रांतिकारिक नसीमुद्दीन मौजी की जीवन गाथा 


उत्तर प्रदेश के जनपद लखीमपुर खीरी के नसीमुद्दीन मौजी के परिवार से प्राप्त जानकारी के अनुसार उनकी पैदाइश संभवत 1880 के दशक के आसपास हुई थी जो कि उत्तर प्रदेश के विशाल जनपद लखीमपुर खीरी के शहर में हुआ था नसीमुद्दीन मौजी के पितृक पारिवारिक लोग खीरी के ही थरवर्न गंज में आज भी निवास कर रहे हैं  जो की एक दर्जी समाज परिवार से संबंध रखते थे जिनके पूर्वज सिलाई का काम करते थे  जिन्होंने जनपद लखीमपुर खीरी से गांधी जी के खिलाफत आंदोलन का बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हुए नेतृत्व किया खिलाफत आंदोलन का नेतृत्व करते हुए नसीमुद्दीन मौजी की अनेक हिंदू और मुस्लिम क्रांतिकारिक मित्र हुए जिनमें से बशीरुद्दीन और माशूक अली जो दोनों ही अंग्रेजों की हुकूमत को उखाड़ फेंकने और सत्ता को ललकारने के लिए हंथगोले व बम बनाते हुए सरसो के खेत में पकड़े जा चुके थे ये लोग वे क्रांतिकारियों में से हैं जब उत्तर प्रदेश की सभी जनपद अंग्रेजों के अधीन आ गए थे तब भी लखीमपुर खीरी जनपद को 2 वर्षों तक अंग्रेजों के अधीन होने से बचाए रखा गया था 15 अगस्त 1947 मैं मिली पूर्ण आजादी में प्रथम जनपद लखीमपुर खीरी के युवाओं सामाजिक कार्यकर्ता के द्वारा लखीमपुर खीरी में बने नसीमुद्दीन मौजी स्मारक स्थल में ही धूमधाम से मनाया गया था  आज भी इस क्रांतिकारिक भवन स्थल में नसीमुद्दीन मौजी व उनके साथियों को याद करते हुए ध्वज रोहण राष्ट्रीय गान वा मालाअर्पण किया जाता है यह भवन लखीमपुर खीरी के कचहरी रोड पर निकट शाहपुरा कोठी स्थापित है जानकारी के अनुसार नसीमुद्दीन मौजी के पिता व बाद में नसीमुद्दीन मौजी (मोहम्मदी कलेक्ट्रेट) लखीमपुर खीरी के कलेक्टर सरकारी आवास में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी थे जिसके कारण कलेक्ट्रेट भवन य सरकारी भवन में उनके आने-जाने में किसी भी प्रकार का कोई रोक-टोक दबाव नहीं था जनपद लखीमपुर खीरी में आज भी यह भवन स्वतंत्रता स्वाधीनता समारोह का साक्षी बना खड़ा हुआ है ऐसा भी कहा जाता है कि नसीमुद्दीन मौजी को जो कार्य पसंद ना आए वह उसे इनकार कर देते हैं चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी होने के कारण अंग्रेज कलेक्टर के द्वारा दबाव बनाते हुए कभी-कभी कुत्ता टहलाने व कक्षा धोने का भी काम, घर की साफ सफाई लिया जाता था जो कि उनको नापसंद ना गवार था सीधे ही अंग्रेज कलेक्टर के आंख में आंख डालकर उसे मना कर देते थे अंग्रेज भी इनको इनके साहस को ना पसंद करते थे इसीलिए उनके नाम में मौजी शब्द का प्रयोग किया जाता है

विश्व में 1920 के दशक में खिलाफत आंदोलन मोमेंट तेजी के साथ भारत में बिगुल बज रहा था इस दौरान तुर्की के खलीफा की हत्या और प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद हर तरफ साम्राज्य को कब्जा करने की होड़ लगी हुई थी तुर्की के खलीफा का पद जाने से विश्व भर के मुसलमान में काफी नाराजगी रोज था हिंदुस्तान में भी अंग्रेजों के खिलाफ मुसलमान में काफी गुस्सा भर चुका था जिसका बदला लेना स्वभाविक हो चुका था जबकि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में खिलाफत आंदोलन की भाग डोर अली बंधुओं के हाथों में ही थी जिसे मुसलमानो को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने खड़े होने की प्रेरणा दी जाती रही थी उसी दौरान भारत में गांधी जी के द्वारा अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा भी दिया जा चुका था अपमान का बदला अंग्रेज कलेक्टर से बदला लेने की भावना 24 घंटे तेजी के साथ दिल में धड़कती रहती थी घटना 26 अगस्त 1920 की है जब बकरीद का त्यौहार था और मुस्लिम समाज के लोग बहुत ही धूमधाम से अपने त्यौहार को मना रहे थे उसी दौरान अंग्रेजों के द्वारा मुसलमानो के बकरीद के खिलाफ एक फरमान जारी किया गया था जो कि मुसलमानो को ना गुजार था इस दौरान नसीमुद्दीन मौजी व उनके साथियों के द्वारा मिलकर प्लान व षड्यंत्र बनाया गया कि बकरीद के दिन ही अंग्रेज कलेक्टर को जानवर की जगह कुर्बानी दी जाएगी  साहस और हिम्मत की बात यह है कि नसीमुद्दीन मौजी के द्वारा कुछ अंग्रेज कर्मचारियों और रॉबर्ट विलियम डग्लस को भी इसकी चेतावनी व सूचना आगामी ही दे दी गई थी बकरीद का दिन आया नसीमुद्दीन मौजी और उसके साथी कलेक्ट्रेट ऑफिसर के घर पहुंचते हैं इस समय रॉबर्ट्स विलियम डग्लस कुछ लिखा पढ़ी के कार्यों में व्यस्त था मौजी के द्वारा यह कहते हुए की  “सतर्क हो जा तू ये मरदूद आज तेरी सहमत आई हुई है”  अंग्रेज कलेक्ट का घर शाहपुरा कोठी में बना हुआ था जहां पर यह लोग लकड़ियों के गट्ठर में तलवार लेकर दीवाल कूद कर अंग्रेज के घर में प्रवेश किया था इतना कहते हुए नसीमुद्दीन मौजी के द्वारा तलवार फेंक कर उसके गले गर्दन पर मारी गई पर उस तलवार से काम ना चला तब उसके दोस्तों ने हमला किया और अंग्रेज कलेक्टर वहां से भागा पर उसका पैर लड़खड़ा कर गिर गया इतने में नसीमुद्दीन मौजी के द्वारा धारदार तलवार से जिस्म से सर को अलग कर दिया गया और उसकी काम करने की टेबल पर सर को रख दिया गया जहां पर उसी डगलस के खून से उसके ही कागज पर इंकलाब जिंदाबाद भी लिखा गया

वहीं भारतवर्ष जिलों में एक तरफ अहिंआत्मक आंदोलन चल रहा था तो दूसरी और बहुत से युवा क्रांतिकारी सशस्त्र क्रांति के पक्षधर थे जो अपने ढंग से अंग्रेजों से मोर्चा ले रहे थे और नसीमुद्दीन मौजी के द्वारा भी वही किया गया  उसी दौरान अंग्रेज कलेक्टर की हत्या करना आज के बुलडोजर से भी ज्यादा खतरनाक था पूरे भारत से लगाकर इंग्लैंड तक हड़कंप मचा हुआ था नसीमुद्दीन मौजी और उसके सहयोगी साथी के साथ बस्ती कसाई टोला में मुसलमान के घर में पनाह ली थी उसी दौरान अंग्रेज सरकार के द्वारा नसीमुद्दीन मौजी और उसके सहयोगियों पर कुछ जुर्माना व पकड़े जाने की रकम उपहार के तौर पर पकड़वाने वाले साथी को भेंट के तौर पर देने की दुग्गी पीटी गई थी पर अफसोस की बात है कि अंग्रेजों की चमचागिरी दलाली करने वालों के द्वारा मुखबारी करते हुए लालच के चलते गिरफ्तार करवा दिया गया था इस घटना के साथ-साथ ही नसीमुद्दीन मौजी व उनके साथियों के द्वारा जिला न्यायाधीश और कप्तान की भी हत्या करने की योजना बनाई गई थी पर वह मुखबारी के चलते असफल रही 

अब नसीमुद्दीन मौजी का उनके तीनों साथियों पर मुकदमा भी चलाया गया नसीमुद्दीन मौजी से सफाई में गवाही मांगी गई नसीमुद्दीन मौजी के द्वारा सूची में महात्मा गांधी, मौलाना अबुल कलाम आजाद और मौलाना शौकत अली का नाम दिया गया था पर अफसोस की बात है कि अंग्रेजी कोर्ट ने दबाव में इनको इजाजत नहीं दी गवाही नहीं हो सकी  इन मुकदमे की खानापूर्ति अपोपचारिकता को पूरा करने के बाद इन तीनो क्रांतिकारियों को सजा मौत फांसी की सजा सुनाई गई जिस घटना के दौरान उनके साथी माशूक अली को 30 अगस्त को लखनऊ से गिरफ्तार किया गया था दफा 302 हत्या के तहत तीनों पर सीतापुर जिला मुख्यालय में मुकदमा चला और जिला जज के सामने पेश किया गया तीनों ने बहुत ही साहस के साथ अपने जुर्म को कबूल करते हुए इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाना शुरू कर दिया  अगले ही महीने यानी 28 सितंबर 1920 को नसीरुद्दीन मौजी और बशीर को फांसी की सजा सुनाई माशूक अली को 6 अक्टूबर 1920 को सत्र न्यायालय सीतापुर में फांसी की सजा सुनाई जुडिशल कमिश्नर अवध ने तीनों की फांसी की पुष्टि की 25 नवंबर 1920 को नसीरुद्दीन मौजी, बशीर और माशूक अली को फांसी दे दी गई थी कहते हैं कि अन्य क्रांतिकारियों की तरह इन तीनों क्रांतिकारियों ने भी फांसी के फंदे को चूमा था कहते हैं फांसी हो जाने के बाद इस दौरान बापू महात्मा गांधी प्रथम बार लखीमपुर खीरी में आए थे क्रांतिकारियों की शहादत को जाया ना होने की बात भी कही थी जानकारी के अनुसार विलोबी की कब्र जनपद लखीमपुर खीरी के क्रिश्चियन सिमेट्री में आज भी मौजूद है फांसी के फंदे पर लटकाने के बाद परिवार के द्वारा जनाजे की मांग करने पर नसीमुद्दीन मौजी को परिवार के हवाले किया गया जिनकी कबर मजार लखीमपुर खीरी के ही पुलिस विभाग रेलवे लाइन में मौजूद है जबकि शेष दोनों क्रांतिकारियों की कब्र सीतापुर की ही सेंट्रल जेल में दफन हुई है जबकि शहीद हुए तीनों क्रांतिकारी में से जनपद लखीमपुर खीरी व सीतापुर में आंख के अस्पताल के पास एक प्रतिमा बनाई गई है  अंग्रेजों के द्वारा घटना को याददाश्त स्थल बनाए रखने के लिए विलोबी की याद में 1924 में रॉबर्ट विलियम डग्लस विलोबी भवन का निर्माण किया गया था  जिसमें 26 अप्रैल 1936 को विलोबी मेमोरियल लाइब्रेरी की स्थापना की गई थी  नसीमुद्दीन मौजी की शहादत के बाद अंग्रेज परस्त लोगों ने नसीमुद्दीन मौजी के नाम से कोई स्मारक ना तो बनने दिए और विरोध भी करते रहे विलोबी भवन के नाम में परिवर्तन पर भी विरोध जताया एक बार फिर अंग्रेजों के चमचा गुलाम होने का सबूत दे दिया क्षेत्रीय सामाजिक संगठनों के मांग करने पर स्वतंत्रता दिवस की स्वर्ण जयंती के मौके पर जिला प्रशासन ने विलोबी मेमोरियल हाल का नाम बदलकर नसीमुद्दीन मौजी भवन कर दिया मौजूदा समय में यह भवन शाहिद नसीमुद्दीन मौजी का स्मारक स्थल है वर्तमान समय में इस भवन में एक लाइब्रेरी पुस्तकालय संचालित होती है जहां पर 500 साल से अधिक अंग्रेजी हुकूमत व भारतीय इतिहास से संबंधित पुस्तकों की उपलब्धता देखी जाती रही है समय-समय पर पुस्तक मेला में कोलकाता व ब्रिटिश पुस्तकालय से कुछ पुस्तक मंगा कर स्थापित की जाती रही हैं आज जनपद में सभी प्रकार के मेलों का धरनो आंदोलनो का संचालन नसीमुद्दीन मौजी भवन के ग्राउंड से ही संचालित हो रहा है अंत में जनपद लखीमपुर खीरी की प्रतिष्ठित संस्था बहुआयामी शिक्षा तकनीकी एवं अनुसंधान आर्गेनाइजेशन के द्वारा सरकार से क्रांतिकारी भवन में जनपद लखीमपुर खीरी के क्रांतिकारियों का उल्लेखनीय योगदान व उनकी प्रतिमा को बनाए जाने की मांग व अपील की जा रही है 

नोट उपरोक्त लेख का अधिकतर स्रोत सूचना एवं जनसंपर्क विभाग स प्रकाशित पुस्तक जिला लखीमपुर खीरी स्वतंत्रता संग्राम के सैनिक से ली गई हैं 

नोट, इस लेख का लेखक सामाजिक संस्थाओं का नेतृत्व कर रहा है और शिक्षा में एमफिल पीएचडी की है विषय का विशेष जानकार है लखनऊ के व्याख्यात इंस्टिट्यूट में विशेष शोधक के पद पर कार्यरत है

आजादी के 78 वर्ष बाद बहुआयामी संस्था खीरी में मनाएगी नसीमुद्दीन मौजी जयंती 

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